जानकर करेंगे भी क्या?नाटक वालों के चक्कर में वक्त बीताऔर वो भी कम्युनिस्टों के साथ,,,उन्होंने कहा थियेटर फ़ॉर द सोशल चेंज और मुझे बदलना शुरु कर दिया मैने कहा मैं तो हीरो लगता ही नहीं,उन्होंने कहा कि तू तो वैसे भी ज़ीरो है सीधा जमूरे की तरह चिपक ले ऐक्टर बन जायेगा बन गया और मेरे खुशहाल जीवन का सत्यानाश हो गया . बरसों सब कुछ छोड़ छाड़ कर थियेटर से चिपका रहा .एक जाम्वंत ने मेरे हनुमान को जगाया और पांच रुपये की फिल्म टिकट ने कमाल दिखाया आखिर आ गया बम्बई. भोजपुरी प्रोड्यूसर मिला था मगर मुझे इंटेलेक्चुअल बुखार चढ़ा था फ़िल्म बनाई "राम नाम सत्य है" फ़िल्हाल झख मार रहा हूं.यार लोग दारु पीने बुलाते हैं काम अकेले कर जाते हैं. एक ने तो पूरा आइडिया ही चुरा कर बेच दिया है. मगर हम भी जनवादी संस्क्रिति की औलाद हं इस बार ऐसा लिखा हूं कि डर लगता है कोई गला न दबा दे. ऐक्टर वैक्टर ढूंढ लिया है बस ४ ५ करोड़ का इंत्जाम हो जाये फिर देखिये कमाल. प्रोड्यूसर वीकेन्ड तक मालामाल न हो जाये फिर कहना.
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