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शॉर्टफिल्म

  • http://dl.dropbox.com/u/7807663/Ram%20Naam%20Satya%20%28G%29/AVSEQ01.डट 

  • मेरी फिल्म राम नाम सत्य है ।
https://youtu.be/I3gC1R5U-94


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Waiting for quinowin

जबसे होश संभाला है मुझे  पिताजी के इतना करीब रहने का मौका कभी नही मिला जितना कि पिछले पांच छः महीने  से मिला है। वैसे भी हमारा रिश्ता साजन फ़िल्म के कादर खान और सलमान भाई वाला बिल्कुल नही है। शेर के सामने बकरी वाला  है। पर  जबसे कोरोना का संकट आया है वो काफी पोजेटिव रहते हैं और मेरे कहानी में दिलचस्पी को देखते हुए प्रोटोकॉल तोड़कर रोज कुछ न कुछ सुनाते रहते हैं । कभी मुहावरा फेंक देते हैं तो कभी इमरजेंसी के  किस्से सुनाने लगते है। बेचारे करे भी तो क्या बंद कमरे में और तो कोई मिल नही  रहा जिससे वो कुछ बतिया सके। मेरे साथ उन्हें भी कैद मिल गई है । दीवाली के बाद किसी कारण से घर गया था वापसी में मम्मी पापा भी आ गए और तब से यहां फंसे हुए हैं ।  रोज शाम को पापा जी पुराने किस्से सुनाते रहते है।    कभी सिमरिया में गंगा पर राजेंद्र पल बनने की कहानी कि जब नेहरू जी पुल का उद्घाटन करने आये थे तब कैसी भगदड़ मची थी और कितने लोग उस भीषण गर्मी में पानी के बिना मर गए थे ।  इतनी भीड़ थी कि पानी ब्लैक में बिक रहा था फिर पुल बनने का दुष्परिणाम-  गंगा की धार मुड़ गई थी और रास्ता छोड़ दिया था , सरकार ने उस बारे मे

घोस्ट राइटर

               शहरों में बारिश  त्योहार की तरह प्रवेश लेता है लोग उसका जश्न मनाते हैं । गर्मी खत्म हो जाती है हल्की हलकी बारिश होती रहती है ऐसे में शराब का लुत्फ मिल जाये तो ज़िन्दगी जन्नत हो जाती है। ऐसे समय मे ही वो यहां आया था । उसका परिवार दूर किसी गांव में रहता था । और उनसे उसका संपर्क लगभग टूट  गया था। वो बहुत कम बार अपने गांव गया था और उसकी स्मृतियां भी कोई खास सुखद नही थी।  पिता प्रॉपर्टी डीलिंग में बेशुमार पैसा कमाते थे। ये अपने पिता से कुछ भी पूछता तो वो पूछते कितने पैसे चाहिए बता दे बाकी सवालों का जवाब देने का मेरे पास वक्त नही है। और दारू या पैसे के नशे में मां की जबरदस्त पिटाई करते थे। उसकी मां बहुत खूबसूरत थी ।वो आठ दस साल का था जब उसके पिता जी मां को पीट रहे थे इसने दारू की बोतल से बाप का सर तोड़ दिया था और सारे पैसे फेंक कर देहरादून चला आया। फिर जब एक बार उसे मां की बहुत याद आई तो वो वापस अल्मोड़ा गया पर अपनी मां से मिल नही पाया शायद पिता की पिटाई से वो चल बसी थी । उसने एकाकी जीवन जिया था ज़िंदा रहने के लिए उसे काफी संघर्ष और जद्दोजहद  से गुजरना पड़ा था ।  उसने

चैप्लिन

जब कभी चार्ली चैपलिन का जिक्र करते हैं तो ऐसे शख्‍स की याद आती है, जिसने पूरी जिंदगी हमें हंसाने में गुजार दी. मगर चार्ली की अहमियत यहीं तक सीमित नहीं. उनकी बातें और जीवन को समझने का नजरिया हमें जिंदगी को  आसान बनाने का तरीका सिखा देता है.चैप्लिन के पिता,  चार्ल्स चैप्लिन सीनियर, एक शराबी थे और अपने बेटे के साथ  उनका कम संपर्क रहा,चार्ली जब महज पांच साल के थे तब एक बार उनकी मां स्टेज पर गाना गा रही थीं. उसी समय गले की एक बीमारी के कारण उनकी आवाज बंद हो गई और वो आगे नहीं गा पायीं. इससे वहां मौजूद दर्शक बेहद नाराज हुए और जोर जोर से चिल्लाने लगे. कॉन्सर्ट के मैनेजर ने पांच साल के चार्ली को मंच पर भेज दिया. छोटे से चार्ली ने अपनी मासूम सी आवाज में अपनी मां का ही गाना गया. इससे वहां मौजूद दर्शक बहुत खुश हुए और सिक्कों की बारिश कर दी।  अपनी ज्यादातर फिल्मों में ट्रैंप नाम का किरदार अदा करते थे. माना जाता है कि ये किरदार उनका अपना ही अतीत था जिसे उन्होंने अपने मुफलिसी के दौर में जिया था. इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि उस दौर में जब पूरा यूरोप आर्थिक महामंदी की तबाही से गुजर रहा था, चार