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Showing posts from 2020

Waiting for quinowin

जबसे होश संभाला है मुझे  पिताजी के इतना करीब रहने का मौका कभी नही मिला जितना कि पिछले पांच छः महीने  से मिला है। वैसे भी हमारा रिश्ता साजन फ़िल्म के कादर खान और सलमान भाई वाला बिल्कुल नही है। शेर के सामने बकरी वाला  है। पर  जबसे कोरोना का संकट आया है वो काफी पोजेटिव रहते हैं और मेरे कहानी में दिलचस्पी को देखते हुए प्रोटोकॉल तोड़कर रोज कुछ न कुछ सुनाते रहते हैं । कभी मुहावरा फेंक देते हैं तो कभी इमरजेंसी के  किस्से सुनाने लगते है। बेचारे करे भी तो क्या बंद कमरे में और तो कोई मिल नही  रहा जिससे वो कुछ बतिया सके। मेरे साथ उन्हें भी कैद मिल गई है । दीवाली के बाद किसी कारण से घर गया था वापसी में मम्मी पापा भी आ गए और तब से यहां फंसे हुए हैं ।  रोज शाम को पापा जी पुराने किस्से सुनाते रहते है।    कभी सिमरिया में गंगा पर राजेंद्र पल बनने की कहानी कि जब नेहरू जी पुल का उद्घाटन करने आये थे तब कैसी भगदड़ मची थी और कितने लोग उस भीषण गर्मी में पानी के बिना मर गए थे ।  इतनी भीड़ थी कि पानी ब्लैक में बिक रहा था फिर पुल बनने का दुष्परिणाम-  गंगा की धार...

क्वारंटाइन

आप इतनी बुजुर्ग हैं, इसके बाद भी आपने घर से चोरों को कैसे भगाया? दादी ने हंसते हुए कहा- ऐसा हुआ कि मैं नीचे हॉल में सोई थी। चोर खिड़की से घर में घुसे। उन्होंने मुझे लात मारकर उठाया। मैं उठी, लेकिन हड़बड़ाई नहीं। चोरों ने पूछा, माल कहां रखा है? तिजोरी किधर है? घर के बाकी मेंबर कहां सोएं हैं? मैंने बिना देर किए तुरंत कहा, सभी पैसा, जेवर लेकर खेत में बने फॉर्म हाउस में रहने गए हैं बेटा। मैं घर में अकेली हूं।  और हां, जाते समय साबुन से हाथ धोकर जाना। कोरोना होने के कारण मुझे यहां क्वारंटाइन किया गया है।

व्यथा

लाइट्स,,,, कैमरा,,,,, ऐक्शन,,,, और वो शुरू हो जाता है.. कभी सोचा है ,,वो कलाकार जो टीवी के ज़रिए लोगों के ड्रॉइंग रूम.. बेडरूम,, यहां तक कि आपके  दिलों तक पहुंच जाते हैं... हंसते हुए.. गाते हुए.. नाचते हुए,  सबका मनोरंजन करते रहते हैं.. बिना थके.. बिना रुके.. बिना शिकायत करे..बिना नियम के,, दिन हो या रात लगातार शूटिंग करते हैं.. पर अब तो सब बंद है.. अब शूटिंग नहीं हो रही.. जानते हैं अब वो सब क्या कर रहे हैं,,? अब डर रहे हैं.. उनके चेहरे से हंसी गायब है.. गाने की हिम्मत नहीं हो रही.. पैर थिरकने की बजाए सुन्न पड़े हैं.. आगे क्या होगा.. ? ज़िंदा कैसे रहेंगे..? दूध का बिल.. महीने का राशन.. घर का किराया.. बिजली का बिल.. गैस का बिल.. बच्चों की फ़ीस...और भी ढेर सारी ज़िम्मेदारियों का क्या होगा ,,,? वो डरा हुआ है ,,,,क्यों,,,? क्यूंकि उसकी  भी एक सामान्य इंसान जैसी ज़रूरतें होती हैं..। आप कहेंगे कि डर कैसा.. शूटिंग शुरू होगी तो सब सामान्य हो जाएगा.. और लोगों के काम भी तो बंद हैं.. वो लोग भी अपने ऑफिस.. अपनी दुकान.. अपनी फैक्टरी खुलने का इंतजार कर रहे हैं.. जैसे ही सब खुलेगा.. काम ...

जॉनी भाई

मुंबई नया- नया आया था और जुहु के यूनिटी कंपाउंड में पेइंग गेस्ट के तौर पर रहता था एक दिन सुबह सुबह शोर सुनकर आंख खुली सब लोग मुझे बिस्तर छोड़ के खड़े हो जाने कह रहे थे  आँख खुली तो देखा  मेरे बिस्तर पर जॉनी लीवर बैठे हुए हैं और मुझे थपथपा रहे हैं मैं नमस्ते करना चाहा कि फिर  एहसास हुआ कि मैं तो बिना कपड़ों के सोया हुआ हूँ इसीलिए दोबारा आँख बंद कर ली चादर  सिर तक  ओढ़ के सो गया  लोग मुझे गाली दे रहे थे बट जॉनी भाई बोल रहे थे नहीं नहीं सोने दे सोने दे  रातभर  काम करके आया है थक गया है बहुत अच्छा लड़का है। और मुझे थपकी देकर सुलाने लगे। मैं खुद को लानत भेजता  चुपचाप लेटा रहा। फिर वो नीचे शूटिंग करने चले गए। तब जाकर मैंने फटाफट दुगुने  कपडे पहने और थोड़े समय बाद जब शॉट ख़त्म हुआ उनसे जाकर मिला और बताया कि मैं  वही हूँ जिसके बिस्तर पर आप अभी आकर बैठे थे। उन्होंने दुबारा शाबासी दी और पूछा हॉटल में काम करते है  बोले नहीं सर  actor हूँ    दिल्ली से आया हूँ  आपके साथ काम मिले न मिले एक पिक्चर ही खिच जाए। उन्होंने त...

महान कलाकारों के हवाले से

The persistence of Memory by Salvador Dali 1: व्यक्ति अपने दिमाग से पेंट करता है अपने हाथों से नहीं. --माइकलैंजिलो   2:  एक महान कलाकार हमेशा अपने समय से आगे या पीछे होता है. --जॉर्ज एडवर्ड मूर   3:तस्वीर एक कविता है  जिसके शब्द नहीं. -- होरेस   4: एक चित्र हज़ार शब्दों के     बराबर होता है.  --नेपोलियन बोनापार्ट   5:एक मूर्तिकार चीजों को आकार देने में रुचि रखता है, एक कवि शब्दों में और एक संगीतकार ध्वनि में. --हेनरी मूर   6: एक कलाकृति एक अद्वितीय स्वभाव का अद्वितीय परिणाम है. --ऑस्कार वाइल्ड   7: एक लेखक को अपने आँखों से लिखना चाहिए और एक चित्रकार को अपने कानो से चित्रकारी करनी चाहिए. --गैरत्रुद स्टेन    8:विज्ञापन बीसवीं सदी की केव आर्ट हैं . --मार्शल मैकलुहान   9:सभी कलाएं प्रकृति की नक़ल हैं. -- लुसिअस अन्निअस सेनिसा    10:  एक कलाकार को उसकी मेहनत के लिए पैसे नहीं मिलते बल्कि उसकी दूरदृष्टि के लिए मिलते हैं. --जेम्स विस्लर    11: एक कला कार सचमुच कभी अपना काम ख़तम नहीं करता, वो बस उ...

चैप्लिन

जब कभी चार्ली चैपलिन का जिक्र करते हैं तो ऐसे शख्‍स की याद आती है, जिसने पूरी जिंदगी हमें हंसाने में गुजार दी. मगर चार्ली की अहमियत यहीं तक सीमित नहीं. उनकी बातें और जीवन को समझने का नजरिया हमें जिंदगी को  आसान बनाने का तरीका सिखा देता है.चैप्लिन के पिता,  चार्ल्स चैप्लिन सीनियर, एक शराबी थे और अपने बेटे के साथ  उनका कम संपर्क रहा,चार्ली जब महज पांच साल के थे तब एक बार उनकी मां स्टेज पर गाना गा रही थीं. उसी समय गले की एक बीमारी के कारण उनकी आवाज बंद हो गई और वो आगे नहीं गा पायीं. इससे वहां मौजूद दर्शक बेहद नाराज हुए और जोर जोर से चिल्लाने लगे. कॉन्सर्ट के मैनेजर ने पांच साल के चार्ली को मंच पर भेज दिया. छोटे से चार्ली ने अपनी मासूम सी आवाज में अपनी मां का ही गाना गया. इससे वहां मौजूद दर्शक बहुत खुश हुए और सिक्कों की बारिश कर दी।  अपनी ज्यादातर फिल्मों में ट्रैंप नाम का किरदार अदा करते थे. माना जाता है कि ये किरदार उनका अपना ही अतीत था जिसे उन्होंने अपने मुफलिसी के दौर में जिया था. इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि उस दौर में जब पूरा यूरोप आर्थिक महामंदी की तबाही ...

घोस्ट राइटर

               शहरों में बारिश  त्योहार की तरह प्रवेश लेता है लोग उसका जश्न मनाते हैं । गर्मी खत्म हो जाती है हल्की हलकी बारिश होती रहती है ऐसे में शराब का लुत्फ मिल जाये तो ज़िन्दगी जन्नत हो जाती है। ऐसे समय मे ही वो यहां आया था । उसका परिवार दूर किसी गांव में रहता था । और उनसे उसका संपर्क लगभग टूट  गया था। वो बहुत कम बार अपने गांव गया था और उसकी स्मृतियां भी कोई खास सुखद नही थी।  पिता प्रॉपर्टी डीलिंग में बेशुमार पैसा कमाते थे। ये अपने पिता से कुछ भी पूछता तो वो पूछते कितने पैसे चाहिए बता दे बाकी सवालों का जवाब देने का मेरे पास वक्त नही है। और दारू या पैसे के नशे में मां की जबरदस्त पिटाई करते थे। उसकी मां बहुत खूबसूरत थी ।वो आठ दस साल का था जब उसके पिता जी मां को पीट रहे थे इसने दारू की बोतल से बाप का सर तोड़ दिया था और सारे पैसे फेंक कर देहरादून चला आया। फिर जब एक बार उसे मां की बहुत याद आई तो वो वापस अल्मोड़ा गया पर अपनी मां से मिल नही पाया शायद पिता की पिटाई से वो चल बसी थी । उसने एकाकी जीवन जिया था ज़िंदा रहने के...

हैमलेट

जीना है या मरना है ! अब तय करना है! शाबाशी किसमे है? किस्मत के तीरों के आघातों को भीतर -भीतर सहते जाना या संकट के तूफानों से लोहा लेना और विरोध करके  समाप्त  उनको कर देना, और समाप्त खुद भी हो जाना? मर जाना, सो जाना, और फिर कभी न जगना! और सोकर मानो ये कहना, सब सिरदर्दो और सब मुसीबतों से, जो मानव के सिर पर टूटा करती, हमने छुट्टी पा ली। इस प्रकार का शांत समापन कौन नही दिल से चाहेगा? मर जाना-सोना-सो जाना! लेकिन शायद स्वप्न देखना! अरे यहीं पर तो कांटा है जब हम इस माटी के चोले को तज देंगे, मृत्यु गोद मे जब सोएंगे, तब क्या- क्या सपने देखेंगे! अरे वही तो हमे रोकते! इनके ही भय से तो दुनिया इतने लंबे जीवन का संत्रास झेलती, वरना सहता कौन? समय के कर्कश कोड़े, जुल्म ज़ालिमों का घमंड घन घमंडियो का, पीर प्यार के तिरस्कार की, टालमटोली कचहरियों की, गुस्ताख़ी कुर्सीशाही की और घुड़कियाँ, जो नालायक लायक लोगो को देते हैं, जबकि  एक नंगी कटार से  वो सब झगड़ो से  छुटकारा पा सकता था। कौन भार ढोता? जीवन का जुआ खींचता? करता -- अपना खून -पसीना  रात दिन एक--- किसी तरह का  अगर न मरने पर...

आगे बढ़ते हैं

साहब का आदेश मानते हुए बीस लाख करोड़ के शून्यों को गिनते हुए पैदल पैदल चलते हैं चलो आगे बढ़ते हैं नौकरी की जगह टोकरी इलाज की जगह बीमारी मुक्ति की जगह भक्ति लघु की जगह महाशक्ति भूख से यारी करते हैं चलो आगे बढ़ते हैं। शिक्षक नही विश्वगुरु छात्र नही युवा छटनी नही आत्मनिर्भर शिकायत नही राष्ट्रद्रोह। स्व नही देश शर्म नही गर्व। हम किसी से नही डरते है चलो आगे बढ़ते है।

थियेटर(कविता)विश्व रंगमंच दिवस

पर्दा खुलता है मंच पर अभिनेता आता है। Theatre  ज़िंदाबाद!! थियेटर आर्ट है थियेटर ज्ञान का भंडार है थियेटर सिगरेट का धुआं है थियेटर भोजन में नमक जैसा है थियेटर चेहरे पर चमक जैसा है थियेटर खूब खा के बोला गया बस है थियेटर जाग के बदला गया करवट है थियेटर प्यास बुझाता है थियेटर जीना सिखाता है थियेटर कोयल की कूक है थियेटर दिल मे उठी हूक है थियेटर नन्ही सी चिड़िया है थियेटर फिल्मो में जाने का जरिया है थियेटर समंदर है थियेटर हम सबके  अंदर है  थियेटर व्यापार है थियेटर सब भाषाओ के पार है थियेटर ज़ुल्मो सितम के खिलाफ आवाज बनकर आता है थियेटर लूम्पेन के मन मे विश्वास जागता है थियेटर सत्ता के गले की फांस है थियेटर चट्टान पर उग आई घास है थियेटर पहला प्यार है थियेटर गर्लफ़्रेंड का इंतज़ार है थियेटर दिल की धड़कन जैसा है थियेटर प्रेमिका के पहले चुम्बन जैसा है थियेटर दोस्ती के लिए बढ़ा हुआ  हाथ है थियेटर भाई बहन का विश्वास है थियेटर बच्चे का दूध बनकर आता है । थियेटर अंधेरे में भी राह बताता है थियेटर  महान ग्रीक ट्रैजिडी है थियेटर शेक्सपीरियन कॉम...

मुरारी

मुरारी    उम्र में  मुझसे आठ दस साल  बड़ा  था  और    उसका लोहा सब मानते थे सामने तो कुछ कह नही पाते थे पर पीठ पीछे सब गाली देते थे। उसका दबदबा  हर उम्र के लोगो पर था ।घर वालो ने उसके साथ किसी तरह से घुलने मिलने पर सख्ती की हुई थी ।पर एक जगह रहने पर कितना बचा जा सकता है और  में भी ऐसे आदमी को इग्नोर कर या उसे नाराज  कर खुद को किसी संकट में नही डालना चाहता था  न ही उसने मुझे कभी गलत बोला उल्टा मेरे लिए किसी से भी झगड़ जाता था वो हर वक्त  देसी कट्टा , बम ,सिक्सर  कमर में लेकर घूमता और बक्त बेवक्त हवाई फायर भी कर देता था। गांव के लोग उससे उलझने से डरते । "गाय हमारी माता है, हमको कुछ नही आता है ।बैल हमारा बाप है, पढ़ना लिखना पाप है" उसके जीवन का दर्शन । स्कूल में शिक्षकों को एक दो बार पीटने के बाद उसने पढ़ाई छोड़ दी थी और ज्यादातर वक्त दियारा झेत्र में  अपने खेतों में डेरा बनाया हुआ था । अपने अंतिम  वक्त मे  जब अचानक उसकी हत्या हो गई  तब जब वो सुधर गया था और कट्टा रखना भी छोड़ दिया था  शायद नक्सलियों न...

बचपन

बचपन में ज्यादातर बच्चों की  ही तरह  काफी  तीव्र बुद्धि का था और जल्द ही कुछ भी सीख लेता था ।जो मेरे बड़े भाई की परेशानी का सबब थी। पिताजी सरकारी नौकरी करते थे और उन्हें जब भी वक्त मिलता हमें  खुद पढ़ाने बैठते । में तो  धड़ाधड़ सब बता देता पर भाई साब को पिताजी का कोपभाजन बनना पड़ता था ।  पिताजी ने हम  दो भाइयो का एडमिशन  साथ साथ इंग्लिश नाम  वाले स्कूल में करवा दिया  स्कूल्स के नाम ही  इंग्लिश स्कूल होते थे जैसे   New competition English school, Batheny English School, Montesree English school   पर पढ़ाई शुद्ध हिंदी में । स्कूल में मैं अपनी योग्यता अनुसार अगली बेंच पर बैठता था और  अपनी हाज़िर जवाबी से  शिक्षकों का भी प्रिय बनता जा रहा था पर ये सुख ज्यादा दिन तक नही मिल पाया   क्योंकि मेरे से बड़े भाई के अनुसार किसी स्कूल में कुछ पढ़ाई होती ही नही थी  और वो इसकी शिकायत पिताजी से करते रहते थे फलस्वरूप मेरा स्कूल भी उनके साथ ही बदल गया   दूसरा स्कूल काफी दूर था  और कई बार स्कूल का र...

कोरोना

कोरोना वायरस मेहरबान कदरदान साहिबान चीन का मर्ज़, यूरोप का सिरदर्द इटली की बीमारी, अमेरिका में महामारी, फ्रांस में गिर रही लाशें, स्पेन में रुक रही साँसे, भारत में भी सुगबुगाहट चेहरों पर  फैली  मृत मुस्कुराहट बढ़ती ही जाती है बढ़ती है वेदना। कर्फ्यू की घोषणा खत्म हर आज़ादी । वही- वही सूचना । प्लेन, बस  या ट्रेन आना जाना  सब बैन घर पर रहो कैद । बाहर निकलना अवैध । सड़के वीरान  । गालियां सुनसान बंद हुए बाज़ार ,बंद सब दुकान मंदिरो में ताले,  मस्जिदों में अज़ान। मेहरबान, कदरदान, साहिबान,  गौर फरमाइएगा-- कलाकार का कोई माई बाप नही होता इनके मरने  से कोई पाप नही होता। और जनता तो आपको पता ही है मेहनत कश होती है- पांच साल में एक बार वोट भी देती है। देश के कंधों पर  बड़ा ही बोझ है। सब कुछ फ्री मिले ऐसी इनकी सोच है। देश के मुंह पर  पड़ा ये तमाचा है फक्त दाम पाने को  कहाँ कहाँ नाचा है। विकास के नारों पर जमी ये धूल है मज़बूत इरादों के शव के फूल है ।  ये जीते जी मृतकों में शामिल हैं इन्हें भी मौत विरासत में हासि...

आलोचना और बुराई

आलोचना और बुराई अक्सर लोग आलोचना शब्द का सहारा लेकर एक-दूसरे की बुराई करते हैं. लेकिन जहाँ तक मैं समझता हूँ, आलोचना का अर्थ किसी की बुराई करना मात्र ही नहीं होता. खासकर अपनी कमजोरियों और बुराइयों को छुपाकर, दूसरों की बुराई करने को आलोचना नहीं कह सकते. आलोचना का अर्थ होता है, किसी तथ्य के सभी पहलुओं की गहन जांच करना. लेकिन अक्सर ऐसा होता नहीं है. दरअसल यह सब हमारी अवसरवादिता की देन है. आइये कुछ उदाहरणों से आलोचना शब्द के दुरुपयोग को समझते हैं  --- हिन्दी में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल को सर्वश्रेष्ठ आलोचक माना जाता है।  मैंने दिल्ली विश्वविद्यायल से ग्रेजुएशन करने के बाद अपने कॉलेज के प्रोफेसर (जिन्हें मित्र कहना ज्यादा ठीक रहेगा)के कहने पर मै और मेरे एक और सहपाठी ने  जे एन यू  में m a में दाखिले का फॉर्म भरा  साथ ही उन्होंने हिदायत भी दी कि  हिंदी साहित्य का इतिहास विषय पर पूछे गए प्रश्न पत्र में  डॉक्टर रामचंद्र शुक्ल  की किताब नही हज़ारी प्रसाद द्विवेदी  के लिखे इतिहास से ही कोट करना । वरना तुम्हे दक्षिणपंथी समझ लिया  जाएगा और एडमिशन नह...

विचारधारा का वायरस (दो)

विचारधारा का वायरस  2 साम्यवाद , समाजवाद, मार्क्सवाद,  नक्सलवाद,उदारवाद,  साम्राज्यवाद, राष्ट्रवाद, आदर्शवाद,रूढ़िवाद, फासीवाद, नाज़ीवाद,अराजकतावाद,अम्बेडकरवाद, आतंकवाद, अतिवाद,  वगैरह- वगैरह कभी-कभी तो खुद मुझे ऐसा लगने लगता है कि मैं इनमे से ही किसी विचारधारा के हाथों का खिलौना हूँ और तब मैं छटपटाने लगता हूँ एक बार आप इस चक्कर मे फंसे नही फिर बरसो या कहिये कई बार तो जीवन फिसल जाता है किसी फालतू की विचारधारा को ढोते- ढोते  ।एक अच्छा इंसान बनना, किताबे पढ़ना, कहानिया-कविताए लिखना ,  दुनिया भर का सिनेमा और थियेटर देखना,  घूमना फिरना यात्राएँ करना,  भाषाएँ सीखना,  संस्कृतियों को समझना , संगीत रचना, पेंटिंग में रम जाना क्या ये काफी नही है।  इससे काम नही चलेगा। क्योकि यूथ अंडर डॉग होता है विचारधारा युवाओ के गुमराह होनेवाले उत्साह को पकड़ता है। यही काम आतंकवाद भी करता है। यूथ का ब्रेनवाश कर अपने एजेंडे को बढ़ाना ।आप एक यूटोपिया में जीने लगते है ।  सच पूछा जाए तो इंसान को किसी विचाधारा की जरूरत ही नही होती है । एक समय की विचारधारा आगे ...

विचारधारा का वायरस (एक)

विचारधारा  का  वायरस। विचारधारा किसी प्रतिभाशाली व्यक्ति  और फिर उसके अनुयायियों द्वारा फैलाया  गया एक ऐसा वायरस है जो व्यक्ति और व्यक्तियों के समूह को उनकी सहमति या अनुमति के बिना उनके दिमाग को संक्रमित कर देता है और इंसान को इसका पता भी नही चलता । संक्रमित व्यक्ति के दिमाग के अंदर ऐसा विश्वास या दृष्टिकोण पैदा हो जाता है जिनके आधार पर वह किसी  समाज , या व्यक्तियों के समूह , या समान विचार रखने वालों या राजनीतिक संगठन  को उचित या अनुचित ठहराता है। इसका न तो कोई वैज्ञानिक आधार होता है न ही जांच पड़ताल करने की जरूरत। संक्रमित व्यक्ति उसे परम सत्य मान कर अनुसरण करना शुरू कर देते हैं धीरे धीरे ये एक खतरनाक रूप ले लेता है और बड़े से बड़े पत्रकार, कलाकार, लेखक ,इतिहासकार, निबंधकार, बुद्धिजीवी,के  सोचने समझने की ताकत और निष्पक्ष निर्णय लेने की शक्ति को पंगु बना देता है। वैसे तो हर व्यक्ति की सोच - विचार में अंतर  होता है  किसी के अनुसार, कोई बात सही हो सकती है तथा किसी को वही बात गलत लग सकती है। पर विचाधारा के वायरस की चपेट में आने पर इस व्यक्तिग...

डेथ ऑफ पाय

एक सपने की मौत पर इरफान खान से अच्छे से  तिग्मांशु धूलिया जी के यहां मिला था उनको एक कहानी सुनानी थी। उनके खास मित्र Rajesh Abhoy ने उनका नंबर दिया था और मेरे बारे में उन्हें बताया था ।इरफान भाई ने वही बुला लिया कि तिशु के आफिस आ रहा हूँ आजा वही सुन लेंगे। उस दुबले पतले आदमी में कुछ ऐसा सम्मोहन था कि मैं गूंगा बन गया। ईश्वर की लाख तपस्या करो पर जब वो सामने आ जाये तो ज़बान बंद पड़ ही जाती है हासिल फ़िल्म मैंने 12 बार देखी थी और तभी से उनकी एक्टिंग का दीवाना हो गया था। मैंने उनके साथ ऐक्टिंग करने की इच्छा जताई थी ।लाइफ ऑफ पाय की चर्चा चली फिर वही इधर उधर की सुनाते रहे। बोले सुनने आया है कि सुनाने। मैंने बड़ी मुश्किल से थोड़ा बहुत सुनाया। कहानी बिहार के ऊपर थी  और उन्हें पसंद आई थी खास तौर पर फ़िल्म का Title उन्हें पसंद आया था Song of the death. उन्होंने दो तीन बार दुहराया  इतने में टिशू सर का अस्सिस्टेंट Hemendra Dandotia  उन्हें बुलाने आ गया। आफिस के बाहर भीड़ लग गई थी इरफान भाई ने  जल्दी से   अपनी सेक्रेटरी और पर्सनल अस्सिस्टेंट का नंबर देते हुए टच में ...

Shoot with Mr Amitabh Bachchan

शूटिंग का पहला दिन था महानायक  अमिताभ बच्चन  के साथ काम करने का  ये मेरा दूसरा मौका था, पहली बार आर माधवन की फ़िल्म  में वो अपने खुद के किरदार में आते हैं  मैं बस उनके पीछे भीड़ में खड़ा थापर उनके साथ खड़े रहने का भी अलग मज़ा था  आश्चर्य इस बात का था कि आज उन्होंने देखते ही मुझे पहचान लिया। मैंने भी उनके पांव छू लिए और बोला सर पिछली बार हिम्मत नही हुई थी। उन्होंने मुझे गले से लगा लिया।  वो मेरे पिता बने थे मैंने डॉयरेक्टर Alejandro Gonzalez Inarritu (Birdman,The Revenent जैसी फिल्मों के प्रख्यात हॉलीवुड निर्देशक) जिनका मैं ठीक से नाम लेना भी नही सीख पाया था से हकलाते हुए अंग्रेजी में  पूछा Sir, if the Father is of such a high stature and I am of a very low height, the audience will be able to digest it? डायरेक्टर कुछ बोलता इससे पहले ही बच्चन साब ने मेरा हौसला बढ़ाते हुए कहा - डाइजेस्ट क्यो नही होगा। बच्चा अपनी माँ पर गया है वैसे भी तुम्हारी मां का रोल  जया जी ही कर रही हैं। मेरे आश्चर्य की सीमा नही थी मैंने डायरेक्टर की ओर देखा उन्होंने भी सहमति म...

लोला और बद्री प्रसाद की अधूरी कहानी।

(पाश्चात्य संगीत सुनाई देता है धीरे धीरे मंच पर रोशनी होती है। बद्रीनाथ अपने दोस्तों के साथ बार मे  बैठा दिखता है।) बद्री: परफॉर्मेंस लिए लंदन जाना था ।पहली खुशी इस बात की  थी कि अब मेरे पास पासपोर्ट है। वर्ना दो फिल्में जिसकी शूटिंग लंदन और चेकोस्लोवाकिया में होनी थी इसलिए हाथ से निकल गयी थी कि मेरे पास पासपोर्ट नही था ।   साल 2012 में मेरे अभिन्न मित्र  और निर्देशक अविनाश  ने  जो  मेरी ऐक्टिंग का कायल था और एक पारिवारिक मित्र की तरह है एक इंडो -थाई  फ़िल्म  के लिए करार किया था NDA  साइन करने के बाद मैंने कहा एक गड़बड़ है। अविनाश ने  Benson & Hedges का धुआं उगलते हुए कहा- क्या ?  मेरे पास पासपोर्ट ही नही है।कितने में बन जायेगा? मैंने सारे खर्चे जोड़ कर जिसमे सिगरेट पीने से लेकर वर्ली जाना, नाश्ता, कोल्ड ड्रिंक, एजेंट की फीस वगैरह शामिल थे  बोला  दस हज़ार । उसने फौरन  हाथ मे दस हज़ार रख दिये और बोला पेमेंट से काट लूंगा, मुझे 10 दिन में पासपोर्ट चाहिए। फ़िल्म तो किसी कारण से नही बनी  पर मेरा पासपो...