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मुरारी

मुरारी    उम्र में  मुझसे आठ दस साल  बड़ा  था  और    उसका लोहा सब मानते थे सामने तो कुछ कह नही पाते थे पर पीठ पीछे सब गाली देते थे। उसका दबदबा  हर उम्र के लोगो पर था ।घर वालो ने उसके साथ किसी तरह से घुलने मिलने पर सख्ती की हुई थी ।पर एक जगह रहने पर कितना बचा जा सकता है और  में भी ऐसे आदमी को इग्नोर कर या उसे नाराज  कर खुद को किसी संकट में नही डालना चाहता था  न ही उसने मुझे कभी गलत बोला उल्टा मेरे लिए किसी से भी झगड़ जाता था वो हर वक्त  देसी कट्टा , बम ,सिक्सर  कमर में लेकर घूमता और बक्त बेवक्त हवाई फायर भी कर देता था। गांव के लोग उससे उलझने से डरते । "गाय हमारी माता है, हमको कुछ नही आता है ।बैल हमारा बाप है, पढ़ना लिखना पाप है" उसके जीवन का दर्शन । स्कूल में शिक्षकों को एक दो बार पीटने के बाद उसने पढ़ाई छोड़ दी थी और ज्यादातर वक्त दियारा झेत्र में  अपने खेतों में डेरा बनाया हुआ था । अपने अंतिम  वक्त मे  जब अचानक उसकी हत्या हो गई  तब जब वो सुधर गया था और कट्टा रखना भी छोड़ दिया था  शायद नक्सलियों ने धोखे से उसे बुला कर मार दिया था।पर ये काफी बाद की बात है   तब वो सुधर चुका   था और हथियार रखना छोड़ कर मुहल्ले में फूल पत्तियां लगाने लगा था  और अपने बच्चो के भविष्य के लिए चिंतित रहता था ।

हमारा गांव नक्सल प्रभावित नही है  पर आसपास दसियो गांव हैं जो नक्सल प्रभावित  कहे जाते हैं और  सरकारी उपेक्षा ,सामाजिक विषमता , शोषण ,गरीबी और अशिक्षा की मार झेल कर धीरे धीरे  नक्सलियों द्वारा ब्रेनवाश कर उनके छुपने का अड्डा भी बन गए हैं   । वैसे तो आज की तारीख में  बिहार काफी बदल चुका है  फोर लेन हाइवे और  अच्छी सड़के बन गयी है   18 20 घंटे बिजली रहती है आप आराम से रात- बिरात कही भी जा सकते हैं वरना एक समय था कि  शाम होते ही लोग घर  में दुबक जाते। बिजली कभी कभी ही आती थी । किसानों की फसल बरसात के इंतज़ार में बिना पानी के सूख जाती थी सड़क में गड्ढे थे या गड्ढो में सड़क पता करना मुश्किल था ।दिन दहाड़े आपसे आराम से  बदमाश गाड़ियां छीन ले  जाते थे । दो चार अपहरण और हत्याए रोज की बात थी । लोगों को लालू जी के मजाकिया अंदाज  और चुटकुलों से ही संतोष करना पड़ता था और बिहार का मतलब लालू । लालू यादव का दौर था जब पटना से ट्रेन आगे बढ़ती  तो लोग सहम जाते ।आपको अपनी ही  रिजर्व्ड सीट पर जरा सा खिसकने कहकर  जो बैठता था फिर आपको खिसकाते खिसकाते सीट से उतार देता था । गोली पिस्तौल रखना आम बात थी । इसलिए शरीफ मां बाप दसवीं कराते ही बच्चो को बाहर पढ़ने भेज देते  थे  वरना कब कहाँ किस केस में नाम पड़ जाए फिरौती के लिए अपहरण हो जाये अभिभावकों को चिंता बनी रहती थी ।  हमारा जिला तो वैसे ही बदनाम था जिस  नाम पर एक सीरियल भी बन चुका है।

वो अपने मुहल्ले के बच्चो के साथ काफी दोस्ताना व्यवहार रखता था और उनकी मदद के लिए तैयार रहता था ।  गालियां मुंह से फूल की तरह झड़ती थी। पूरे मोहल्ले के बच्चे अगर कही अकेले फंस गए या पिटने की नौबत आ गयी तो मुरारी   का  भाई हूँ बता देना काफी था । वो अपनी  हैरत अंगेज़ वीरता पूर्ण कहानियों से   बच्चो को रोमांचित कर देता था ।घोड़े से चलना ।नदी में तैरना  । कसरत करने की प्रेरणा देना और कबड्डी और कुश्ती लड़वाना उसके शौक थे ।  जिससे वो नाराज़ हो जाता रात में कभी  शराब पीकर देर तक गालियां देता रहता और उसके नाम से एक दो गोलियां हवा में दाग देता  । मैं जब  कभी दिल्ली से गांव जाता तो बड़ा खुश होता और   हंसता हुआ हाफ पैंट या टीशर्ट लाने कहता कि  भाई हो वहां से कुछ लेके आया करो । मै अपने कॉलेज में  एक दोस्त से उसकी चर्चा की तो  मेरा दोस्त विकी जो तब बिलकुल बॉबी देवल  लगता था  काफी एक्साइटेड होकर उससे मिलने मेरे साथ बिहार पहुच गया  फिर मुरारी भाई  ने रात में काफी ज़िद करने पर अत्याधुनिक हथियार  जो उसने शायद ज़मीन बेच कर या कही से खरीद कर लाया था दिखाया  और बोला बाज़ार में इसकी कीमत लाखों में है और ये पुरुलिया से आया है। एक मिनट में 100 राउंड फायर करता है। विकी ने उसे काफी छू कर देखा । कंधे पर रखा, ट्रीगर पर हाथ रखा  मैं पसीने से तरबतर था और  मन ही मन हनुमान चालीसा का पाठ कर रहा था
 नई फिल्म आने पर सिनेमा हॉल की खिड़कियों पर जहाँ भयंकर सरफुटौवाल होता  और  टिकट मिलना एक दुर्लभ संयोग लगता  कई बार हफ़्तों खिड़की से बिना टिकट लिए वापस  आना पड़ता था ।वही मुरारी को देख कर बड़े से बड़ा भाई भी टिकट खिड़की छोड़ कर पीछे हो जाता था इसकी दूसरी वजह थी वो आसमान से छलांग लगाता था  मुझे फूल और कांटे का याद है इतनी भीड़ थी कि लोगो के हाथ छिल गए थे । ऐसा धक्का लगता कि  दस पंद्रह लोग ज़मीन पर गिर जाते और हाथ पांव सर सब टूट फूट जाते  फिर भी भीड़ में से कोई हटने को तैयार नही ।  मेरा दोस्त   जो सिनेमा हॉल जाते हुए जेब मे नया जनेऊ खरीद कर रखे रहता था और  कपड़े उतार कर जनेऊ पहन कर सीधा टिकट विंडो में हाथ घुसा देता था  कई बार उसकी तरकीब काम आ जाती थी पर उस दिन ऐसी भीड़ थी कि  धक्के से उसका होंठ  फ़ूट गया और बेचारा जार जार रोता बाहर आ गया। मैं ने हैंड पम्प पर उसका चेहरा धुलवाया और दोनों मायूस होकर प्लेकार्ड देखने लगे  और अजय देवगन के भयंकर  स्टंट  सीन की कल्पना कर रहे थे।तभी मुरारी भाई अवतरित हुए और लोगो के सिर पर चढ़कर काउंटर से एक मिनट में टिकट निकाल दिया ।हम महामानव की अद्भुत प्रतिभा से दंग थे ।वैसा एक्सन सीन फ़िल्म में नही दिखा जैसा मुरारी भाई ने टिकट काउंटर पर दिखाया था ।  वो हिट से हिट  फिल्म फर्स्ट डे फर्स्ट शो दिखाने की  काबिलियत रखता था  फिल्मे देख देख कर प्रक्टिकल करने का मूड होता  और  खेल खेल में ही मुरारी भाई ने पिस्तौल पकड़ना और घोड़ा खींचना सिखा दिया था ।कभी कभी जब उसे कोई अंदेशा होता   वो  पिस्तौल और गोलियां घर ले जाने भी दे देता था । उसके पास पुरुलिया में गिराए गए हतियार की सारी डीटेल  मालूम थी जो उसने अखबार पढ़कर इकट्ठा की थी  और नमक मिर्च लगा कर उन कहानिया वो खतरनाक तरीके से सुनाता रहता था . वो अपने आप को परशुराम का वंशज और  रणवीर सेना का सपोर्टर कहता था।
18 दिसंबर, 1995 को पश्चिम बंगाल के पुरुलिया कस्बे के ग्रामीण सुबह-सबेरे जागने के बाद रोज की तरह अपने खेतों की ओर जा रहे थे. इस दौरान उन्हें अचानक जमीन पर कुछ बक्से दिखाई दिए. जब इन बक्सों को खोला गया तो ग्रामीणों की आखें खुली की खुली रह गईं.
इनमें भारी मात्रा में बंदूकें, गोलियां, रॉकेट लॉन्चर  और हथगोले जैसे हथियार भरे हुए थे. जितने विस्फोटक ये हथियार थे ये खबर भी उतने ही विस्फोटक तरीके से देशभर में फैल गई   । चारो तरफ अफवाहों का बाज़ार गर्म था जितनी मुंह उतनी बातें ।
जांच एजेंसियों के मुताबिक ‘एन्तोनोव-26’ नाम के इस रूसी एयरक्राफ्ट ने ही 17 दिसंबर, 1995 की रात को पुरुलिया कस्बे में हथियार गिराए थे. पैराशूटों की मदद से गिराए गए उन बक्सों में बुल्गारिया में बनी 300 एके 47 और एके 56 राइफलें, लगभग 15,000 राउंड गोलियां (कुछ मीडिया रिपोर्टें राइफलों और गोलियों की संख्या इससे कहीं ज्यादा बताती हैं । )आधा दर्जन रॉकेट लांचर, हथगोले, पिस्तौलें और अंधेरे में देखने वाले उपकरण शामिल थे.
 ‘ लेकिन अभी तक यह पता नहीं चल सका है कि इस कांड के पीछे असल वजह आखिर क्या थी ? इस घटना को लेकर अब तक इतनी सारी कहानियां सामने आ चुकी हैं जिन्हें पढ़ने-सुनने के बाद ‘जितने मुंह उतनी बातें’ वाली कहावत का मतलब आसानी से समझा जा सकता है.
गांवो में भी इन चीज़ों पर जबरदस्त बहस थी लोगो के पास ज्यादा कुछ करने को होता भी नही था । अपराध और राजनीति बहस के यही दो विषय हुआ करते  थे  कुछ लोग कहते कि  जमालपुर वाले  बाबा नाम केवलम का इसमे हाथ है  और इनका संगठन आनंद मार्ग इन हथियारों की मदद से बंगाल सरकार के खिलाफ विद्रोह छेड़ना चाहता था
बहुत कम हथियार ही मौके से बरामद हुए ये सच्चाई थी बाकी सब हवा में बातें थीं  बांग्लादेश और लिट्टे तक का नाम इस मामले में आया  मगर मुरारी भाई इन दावो कों  सिरे से खारिज करता  और सारी जांच एजेंसी को मूर्खो का जमात कहकर हंसता । पुरुलिया हथियार कांड को लेकर  उसकी अपनी ही दिलचस्प थ्योरी थी .उसका मानना था  कि  सब अमेरिका का खेल है  उसकी  खुफिया एजेंसी सीआईए ने म्यांमार के काचेन विद्रोहियों की मदद के लिए हथियारों से भरे इस एयरक्राफ्ट को भेजा था लेकिन  वो चूतिये दिशा भटक गए और गलती से इन्हें पुरुलिया में गिरा दिया । ये सब भगवान परशुराम की कृपा है और नक्सलियों ने सवर्णो की जो हत्या की है उसका बदला लेने के लिए अमेरिका के द्वारा मदद भेजी गई है अब यहां बेमतलब सब खोजबीन में लगे हुए हैं।
विश्व भानु

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