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बचपन


बचपन में ज्यादातर बच्चों की  ही तरह  काफी  तीव्र बुद्धि का था और जल्द ही कुछ भी सीख लेता था ।जो मेरे बड़े भाई की परेशानी का सबब थी। पिताजी सरकारी नौकरी करते थे और उन्हें जब भी वक्त मिलता हमें  खुद पढ़ाने बैठते । में तो  धड़ाधड़ सब बता देता पर भाई साब को पिताजी का कोपभाजन बनना पड़ता था ।  पिताजी ने हम  दो भाइयो का एडमिशन  साथ साथ इंग्लिश नाम  वाले स्कूल में करवा दिया  स्कूल्स के नाम ही  इंग्लिश स्कूल होते थे जैसे   New competition English school, Batheny English School, Montesree English school   पर पढ़ाई शुद्ध हिंदी में । स्कूल में मैं अपनी योग्यता अनुसार अगली बेंच पर बैठता था और  अपनी हाज़िर जवाबी से  शिक्षकों का भी प्रिय बनता जा रहा था पर ये सुख ज्यादा दिन तक नही मिल पाया   क्योंकि मेरे से बड़े भाई के अनुसार किसी स्कूल में कुछ पढ़ाई होती ही नही थी  और वो इसकी शिकायत पिताजी से करते रहते थे फलस्वरूप मेरा स्कूल भी उनके साथ ही बदल गया   दूसरा स्कूल काफी दूर था  और कई बार स्कूल का रिक्शा  ही नही आ पाता था   फिर उसे भी छोड़ना पड़ा । फिर कोई और स्कूल वो  मुझे अच्छा नही लगा , भाई तो किसी ऐसे ही बहाने के लिए तैयार बैठे थे । फिर चौथा ।इतने स्कूल बदलने से मैं दूसरों के मुकाबले कमजोर पड़ने लगा और  कॉन्फिडेन्स खोने लगा । भाई साहब  ने पिताजी पर जोर डाला कि इन स्कूलों से अच्छी पढ़ाई तो सरकारी स्कूल में होती है  और ये नजदीक भी है । पिताजी को झांसे में लेने  में  वो सफल रहे थे। सरकारी स्कूल में   वो टीचर  को कभी नीम्बू कभी अमरूद कभी केले का गुच्छा देकर  सेट कर लेतें   थे और  पास हो जाते थे  मैं भी किसी तरह पास होता हुआ हाई स्कूल तक पहुच गया  । यही से मेरा परिचय बाहर की दुनिया से हुआ । में स्कूल के बजाय रोज अपने एक दोस्त  के साथ  रेलवे की पटरी पकड़ फ़िल्म देखने  निकल जाया करता था ।शाम  को थोड़ी देर उसके घर पर बैठकर  पांच   बजे तक  घर लौट जाता   सातवी क्लास से दसवीं तक खूब फिल्मे देखी । जब तक पिक्चर बदलती नही थी उसी को  रोज रोज देखते रहते थे। मेरे दोस्त के पास पैसों की कमी नही थी ।   पास होने के लिए जो घर पर पिताजी से  या खुद पढाई  करता था काफी थी । मेरे दोस्त को कोई पूछने वाला नही था । उसके पिताजी माल बाबू थे और जब भी घर आते थे काफी माल लेकर आते थे और वो माल बेचकर फ़िल्म देखने के पैसे जुगाड़ कर लेता था  उसके घर पर फटे कपड़ो वाले नंगे पुंगे बच्चों का जमघट लगा रहता था ।  और वो दिनभर कंचे खेलना या तालाब से  छोटी मछली, मेंढक या घोंघे पकड़ कर ले आते और उसी से खेलते । शुरू में मै उनसे दूरी बना के रहता पर धीरे धीरे मज़ा आने लगा  ।  दसवीं के बाद मै पढ़ाई के लिए बाहर चला गया पर मुझे उन दोस्तो की याद आती रही ।

 मेरा दोस्त फिल्मे देखता देखता अब हथियार रखने में ज्यादा दिलचस्पी रखने लगा  । में जब गांव आया तो मेरी माँ ने बताया कि अब उससे मत मिलना  वो ट्रेन में डकैती करने   लगा है और कुछ दिन जेल रहकर भी आया है  ।  नक्सली बन गया है मुझे अपने दोस्त पर पूरा भरोसा था कि उसके जैसा डरपोक आदमी ऐसा कुछ कर ही नही सकता।


नक्सलवाद का जन्म पूर्वी भारत के ग्रामीण भागों में स्थानीय स्तर पर विकास की कमी और गरीबी के खिलाफ एक विद्रोह के रूप में हुई। 'नक्सल' शब्द का नाम पश्चिम बंगाल राज्य के नक्सलबाड़ी नामक गाँव से पड़ा है, जहाँ ये आंदोलन खड़ा हुआ था। नक्सलियों को वामपंथी कट्टरपंथी कम्युनिस्ट माना जाता है जो माओवादी  विचारधारा से प्रेरित चारु मजूमदार  ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी  में हुए विभाजन के  बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी और लेनिनवादी) का गठन किया। प्रारंभ में आंदोलन का केंद्र पश्चिम बंगाल था। और पहला हमला बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव में हुआ  इसके बाद, यह भारत के कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) जैसे भूमिगत समूहों की गतिविधियों के माध्यम से छत्तीसगढ़,  बिहार, झारखंड, ओडिशा और आंध्र प्रदेश जैसे ग्रामीण मध्य और पूर्वी भारत के कम विकसित क्षेत्रों में फैल गया।
 
जारी----

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